श्रीमद्भागवत गीता ज्ञान यज्ञ के साथ पूर्ण हुआ गीता जयंती
गिरिडीह : सिहोडीह सिरसिया में स्थित श्री कबीर ज्ञान मंदिर में आयोजित दो दिवसीय श्रीमद्भागवत गीता जयंती की पूर्णाहुति आज *गीता ज्ञान यज्ञ* के साथ की गई। सद्गुरु मां ज्ञान के सानिध्य में गीता की दिव्य मंत्रों के साथ यज्ञ हवन किया गया। इसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया, तत्पश्चात महा आरती एवं भंडारे का आयोजन भी किया गया।
इस अवसर पर सदगुरु मां ज्ञान ने उपस्थित जन समुदाय को संबोधित करते हुए श्रीमद् भागवत गीता के महत्व को बताते हुए कहा–
जिस तरह आग का गुण है दहकना चाहे आग में कोई भी प्रवेश करें शीतलता प्रदान नहीं करेगी। ठीक उसी प्रकार श्रीमद्भागवत गीता का गुण है शांति, सुख, आनंद का खजाना लुटाना, चाहे इसे अपनाने वाला हिंदू हो, मुसलमान हो, सिख हो यहूदी हो, या ईसाई हो। सनातन धर्म ही एक ऐसा धर्म है इसके बाद जिसके पास श्रीमद्भागवत गीता है, जो साक्षात भगवान वाणी है, जिसमें डुबकी लगा कर सभी धर्म संप्रदाय पंथ मजहब के लोग शांति को प्राप्त कर सकते हैं।
सद्गुरु मां ज्ञान ने कहा कि जिस प्रकार का रोग होता है उसी प्रकार की दवाई दी जाती है। आज मानव मानव को दुख, अशांति, डिप्रेशन, पारिवारिक कलह जैसा सनातन रोग लगा हुआ है, जिसे ठीक करने के लिए सनातन दवा की आवश्यकता है, और वह सनातन दवा है *श्रीमद्भागवत गीता।*
आगे कहा –
यह संभव है कि वैज्ञानिकों के खोज में जिन तथ्यों को पाया गया है, और कहा गया, भविष्य में उनका उत्तर बदल सकता है उनका तथ्य बदल सकता है। किंतु श्रीमद्भागवत गीता एक ऐसा ग्रंथ है इसमें भगवान के द्वारा की गई शंकाओं के समाधान का जो उत्तर है वह अनादि है, सनातन है। भूतकाल, वर्तमान और भविष्य के लिए वही उत्तर था है और रहेगा।
मां ज्ञान ने कहां की आज पाश्चात्य सभ्यताओं का अंधानुकरण कर व्यक्ति दौड़ रहा है। एक चीज देखा जाता है कि सिर्फ संपदा, भौतिक समृद्धि, के बटोर लेने और सुख सामग्री रहने के बाद व्यक्ति सुखी हो गया, किंतु जब उसके जीवन में विपदा आती है, आर्थिक आभाव आता है, थोड़ी सी भी प्रतिकूल परिस्थिति होती है तो वह तो वह सह नहीं पता है, डिप्रेशन में चला जाता है सुसाइड करने का मन करने लग जाता है क्योंकि वह सीख ही नहीं है कि भी विपदा में आने पर हम क्या करें? क्योंकि वहां गीता जैसा शास्त्र नहीं जो तनाव में शांति दुख में आनंद और विपदा में संपदा का भाव जगा दें, यह ज्ञान, यह समझ, यह बोध आती है श्रीमद्भागवत गीता से। श्रीमद्भागवत गीता के अंदर वह अलौकिक खजाना छुपा हुआ है जिसे आत्मसात कर लेने से व्यक्ति सभी तरह के दुखों और तनाव से मुक्त हो सकता है।
किसी भी कार्य को करते समय सही अथवा गलत का चयन करने हेतु एक आस्तिक व्यक्ति कहता है ईश्वर से डरो। अपने हिसाब से शुभ कर्म करने के बाद भी यदि व्यक्ति के जीवन से दुख नहीं जाता तो नास्तिक कहता है ईश्वर से लड़ो, किंतु संत सद्गुरु कहते हैं की ना ईश्वर से डरो और ना ईश्वर से लड़ो बल्कि गीता को पढ़ो। क्योंकि सभी दुखों से मुक्ति, आनंद का खजाना, अध्यात्म का मार्ग और पारिवारिक जीवन जीने की कला सभी गीता में छिपा हुआ है, पढ़ो, गीता के ज्ञान को अपने जीवन में धारण करो और आनंदित हो जाओ।